इंदौर कलेक्टर की कुर्सी पर राजनीति का रंग – कैलाश विजयवर्गीय की ‘ना सुनना’ बनी शिवम वर्मा की काबिलियत

#निरंजन वर्मा
इंदौर, 8 सितंबर।
मध्यप्रदेश की सियासत एक बार फिर प्रशासनिक तबादलों को लेकर सुर्खियों में है। सोमवार शाम को इंदौर कलेक्टर आशीष सिंह का तबादला कर उन्हें उज्जैन भेजा गया, जबकि नगर निगम आयुक्त शिवम वर्मा को इंदौर कलेक्टर की कुर्सी सौंप दी गई। यह फैसला भले ही सामान्य प्रशासनिक प्रक्रिया बताया जा रहा हो, लेकिन राजनीतिक गलियारों में इसे एक ‘मैसेज’ के तौर पर देखा जा रहा है।
दरअसल, इंदौर में अधिकारियों की नियुक्ति का पैमाना बीते कुछ समय से बिल्कुल अलग है। यहां कलेक्टर और कमिश्नर वही बनाए जाते हैं जो भाजपा के वरिष्ठ नेता और नगरी प्रशासन  मंत्री कैलाश विजयवर्गीय की बात नहीं सुनते। यह बात खुद विजयवर्गीय भी सार्वजनिक मंच से कह चुके हैं। उन्होंने एक कार्यक्रम में तंज कसते हुए कहा था – “शिवम वर्मा फोन पर सिर्फ ‘हाँ’ कहते हैं, लेकिन काम नहीं करते।”
यही ‘खासियत’ भोपाल के सत्ता केंद्र को भा गई और शिवम वर्मा को इंदौर का नया कलेक्टर बनाने की पटकथा लिखी गई। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि इंदौर में अफसरों की नियुक्ति का सबसे बड़ा पैमाना यही बन गया है कि वे कैलाश विजयवर्गीय की न सुनें।

गौरतलब है कि एक डॉक्टर का मकान अवैध बताकर विस्फोटक से ध्वस्त किए जाने की कार्रवाई के बाद विजयवर्गीय ने अधिकारियों की कार्यशैली पर जमकर नाराज़गी जताई थी। तब उन्होंने मंच से कहा था कि नगर निगम आयुक्त उनकी सुनते नहीं।
राजनीतिक पृष्ठभूमि में देखें तो सिर्फ मोहन यादव की सरकार ही नहीं, बल्कि शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में भी विजयवर्गीय हाशिए पर नज़र आए। खुद उन्होंने 2008 में मेरिएट होटल  ( तब फॉर्च्यून ) में आयोजित कार्यक्रम में कहा था – “शिवराज जी, मेरे हाथ लौटा दीजिए, ।” यह बयान इस ओर संकेत था कि वे सत्ता में अपनी ‘पावर’ की पुनर्स्थापना चाहते थे। लेकिन शिवराज चौहान सरकार में उन्हें यह पावर कभी नहीं मिला। मोहन सरकार भी उसी रास्ते पर है।

इस राजनीति के कारण सबसे ज्यादा नुकसान इंदौर का हो रहा है क्योंकि इंदौर में अफसर व नेताओ के बीच तालमेल न होने से विकास के काम रुक रहे हैं।  कैलाश जी जिस विभाग से ताल्लुक रखते हैं इसका सीधा संबंध लोगों के जीवन से है ।