इंदौर | नगर निगम इंदौर के नए नियमों और अफसरों की लापरवाही के कारण शहर के करीब 4,000 व्यापारी भारी संकट में फंस गए हैं। निगम द्वारा पहले जिन दुकानों को लीज पर दिया गया था, अब उन्हीं दुकानों के नामांतरण की प्रक्रिया में ऐसे नियम जोड़े गए हैं, जिससे दुकानदारों की वर्षों की पूंजी बेकार होती नजर आ रही है।
सूत्रों के अनुसार, पहले निगम की दुकानें 30 साल की लीज पर दी जाती थीं, लेकिन अब निगम ने नामांतरण की अवधि सिर्फ शेष बचे समय तक सीमित कर दी है। इतना ही नहीं, यदि कोई दुकानदार अपनी दुकान बेचना चाहे तो वह अब प्रत्यक्ष बिक्री नहीं कर सकता, बल्कि उसे पहले दुकान निगम को सरेंडर करनी होगी, जिसके बाद निगम उसे टेंडर प्रक्रिया के माध्यम से दोबारा आवंटित करेगा।
इस नीति परिवर्तन के कारण नगर निगम की लाखों रुपये मूल्य की दुकानें अब कौड़ियों के भाव हो गई हैं। व्यापारियों का कहना है कि निगम की यह नीति उन्हें आर्थिक रूप से तोड़ने वाली है।
नगर निगम के पूर्व उप आयुक्त चेतन्य कृष्णा के कार्यकाल के दौरान ही यह उलझन शुरू हुई थी। उन्होंने निगम की दुकानों का किराया पाँच गुना बढ़ा दिया था, जो आज तक वापस नहीं हुआ है। इस मुद्दे को लेकर व्यापारियों ने महापौर पुष्यमित्र भार्गव से भी मुलाकात की थी, जिन्होंने किराया कम करने का आश्वासन दिया था, लेकिन एक वर्ष बीत जाने के बाद भी न तो कोई आदेश जारी हुआ, न ही कागजी कार्रवाई शुरू हुई।
निगम की राजस्व शाखा में इस विषय पर कोई अधिकारी फाइल साइन करने को तैयार नहीं होगा क्योंकि राजस्व संबंधित मामलों में जिम्मेदारी तय होना मुश्किल होता है।
कुल मिलाकर, नगर निगम की ‘खराब नीतियों’ और ‘लालची रवैये’ ने इंदौर के छोटे व्यापारियों को गहरे आर्थिक संकट में डाल दिया है।
इंदौर नगर निगम की ‘खराब नियत’ से व्यापारी परेशान, लाखों की दुकानें कौडी की हुईं
 
			
